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माँ पिताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला प्रयोग कोर्ट-कचहरी मुक़दमा व शत्रु शमन के लिए अत्यधिक प्रभावशाली है। यह शत्रु, रोग एवं क़र्ज़ का मुक्ति कारक है। शत्रु का व्यवहार देख कर इसका प्रयोग भी बदल जाता है। खड्ग प्रयोग कई विधान से किया जाता है। मैं यहाँ एक सहज विधान दे रहा हूँ। बगला स्तोत्र शत्रु-नाश एवं कृत्या नाश और परविद्या-छेदन करने के लिए एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है। साधारण साधकों को प्रारंभ मे कुछ समय आवेश व आर्थिक कष्ट व दबाव भी रहता है परन्तु बगलामूखी की पूजा उपरान्त शांति हो जाती हैं। सर्वप्रथम भगवती बगलामुखी का एक चित्र ले; ना मिलने पर हल्दी का टीका पुजा स्थल या दीवार पर लगा दें। सरसों के तेल या धृत का ही दीपक जलायें तथा दीपक में एक चुटकी हल्दी डालकर जलायें। इसके पश्चात हाथ में पीले फूल, पीली हल्दी युक्त अक्षत-जल लेकर भगवती पिताम्बरा का विनियोग करें।

विनियोग करें:

ॐ अस्य श्री पीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममा भीष्ट सिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।

हृदयादि-न्यास करें:

नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास करें:

ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः

बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा

सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्

वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्

जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्

बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

श्राप विमोचन:

ह्लीं वीज बगुलामुखी देवी स्तम्भनाअस्त्र-ब्रह्माअस्त्र

शापद्विमुकता-भव ,सप्त-रिषी शापाद विमुक्ता:

भगवती का ध्यानः-

हाथ में पीले फूल, पीले हल्दी युक्त अक्षत और जल लेकर भगवती पिताम्बरा का ‘ध्यान’ करें-

मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।

पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।

जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।

गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

पितामराअष्टक।…

मानस-पूजनः-

इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन भी करें –

ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।

खड्ग-माला-मन्त्रः-

ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

पुन: मात्रं खड्गमाला का ही बीर भाव से पाठ करे अर्द रात्रि मे पाठ करने के लीये गुरु आज्ञा प्राप्त करे , जो लोग दीक्षित नही हैं वो खड्गमाला पाठ उपरान् पीले मीठे केशर युक्त चावलों का भोग लगावें देवी के दुबारा किसी प्रकार पीताम्बरा के पाठ करने पर कुछ अनिष्ट ना हो उस हेतु बगलामुखी की आरती करें। ये एक सरल व सहज बिधान हैं।

बगलामुखी आरती

जय जयति सुखदा, सिद्धिदा, सर्वार्थ – साधक शंकरी।

स्वाहा, स्वधा, सिद्धा, शुभा, दुर्गानमो सर्वेश्वरी ।।

जय सृष्टि-स्थिति-कारिणि-संहारिणि साध्या सुखी।

शरणागतो-अहं त्राहि माम् , मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय प्रकृति-पुरूषात्मक-जगत-कारण-करणि आनन्दिनी।

विद्या-अविद्या, सादि-कादि, अनादि ब्रह्म-स्वरूपिणी।।

ऐश्वर्य-आत्मा-भाव-अष्टम, अंग परमात्मा सखी।

शरणागतो-अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय पंच-प्राण-प्रदा-मुदा, अज्ञान-ब्रह्म-प्रकाशिका।

संज्ञान-धृति-अज्ञान-मति-विज्ञान-शक्तिविधायिका ।।

जय सप्त-व्याहृति-रूप, ब्रह्म विभू ति शशी-मुखी ।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

आपत्ति-अम्बुधि अगम अम्ब! अनाथ आश्रयहीन मैं।

पतवार श्वास-प्रश्वास क्षीण, सुषुप्त तन-मन दीन मैं।।

षड्-रिपु-तरंगित पंच-विष-नद, पंच-भय-भीता दुखी।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय परमज्योतिर्मय शुभम् , ज्योति परा अपरा परा।

नैका, एका, अनजा, अजा, मन-वाक्-बुद्धि-अगोचरा।।

पाशांकुशा, पीतासना, पीताम्बरा, पंकजमुखी।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

भव-ताप-रति-गति-मति-कुमति, कर्त्तव्य कानन अति घना।

अज्ञान-दावानल प्रबल संकट विकल मन अनमना।।

दुर्भाग्य-घन-हरि, पीत-पट-विदयुत झरो करूणा अमी।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

हिय-पाप पीत-पयोधि में, प्रकटो जननि पीताम्बरा!।

तन-मन सकल व्याकुल विकल, त्रय-ताप-वायु भयंकरा।।

अन्तःकरण दश इन्द्रियां, मम देह देवि! चतुर्दशी।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

दारिद्रय-दग्ध-क्रिया, कुटिल-श्रद्धा, प्रज्वलित वासना। वासना।

अभिमान-ग्रन्थित-भक्तिहार, विकारमय मम साधना।।

अज्ञान-ध्यान, विचार-चंचल, वृत्ति वैभव-उन्मुखी।

शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

आरती का जल का लोटा लें और लोटे को ज्योत के उपर से उतारें तथा जल की बुंदे जल पर छोड़ें। हाथ में जल लेकर चारों दिशाओं में फेंकते हुये निम्न श्लोक बोलें:

नव -यौवन सपंन्नां सर्वा: भरण भूषितताम् ।

पीतमाल्यानुवसनां स्मरे तां वगला मुखखीम्म् ।।१।।

नमामि नमामि पीताम्-बरे नमामि बग़ले नमों नम: ।

नमामि हर्द्रेिरें माँ बगलामूखीम् नमों नम: ।।२।।

या अन्य भक्त होने पर उन सब पर छींटे मारें।

नव -यौवन सपंन्नां सर्वा: भरण भूषितताम् ।

पीतमाल्यानुवसनां स्मरे तां वगला मुखखीम्म् ।।

नमामि नमामि पीताम्-बरे नमामि बग़ले नमों नम: ।

नमामि हर्द्रेिरें माँ बगलामूखीम् नमों नम:

इसके पश्चात पीताम्बरी नवधा अराधना करे।

हाथों में खूले पुष्प लेकर पीताम्बर नवधा अराधना करे ।

पीताम्बरी नवधा अराधना । या देवी सर्वभूतेषु पीतरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु शत्रुहतां संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु प्रेतनीशिनी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु रोग नाशनि संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु सर्वभयनाशिनी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु सर्वसम्मतिदायनी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु मंगलकारिणी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु मोक्छदायनी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु बगलारूप्ण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

योनि मुद्रा पश्चात दण्डवत प्रणाम करें।

शत्रु पक्ष चालाक व प्रयोग करने वाले तांत्रिक को जब ये ज्ञात होता है कि मेरा द्वारा किया गया प्रयोग कट रहा है और मेरा नुकसान हो सकता है तब वह अन्य विधानों और अन्य तंत्र प्रयोगों के माध्यम से तंत्र प्रहार करना प्रारंभ कर देता हैं। इस हेतु साधक का नुकशान हो  सकता हैं। यदि बिना दीक्षा लिए प्रयोग किया जाए तब साधक को नुकसान हो सकता है। अत: साधकों को दीक्षित होन आवश्यक है और बीज मंत्र के पुरुषचरण के उपरांत ही गुरु यज्ञ लेकर खड़क माल मात्रण का प्रयोग करना चाहिए।

हमारे यहाँ माँ बगलामुखी साधना पीठ अर्थात दैत्य गुरु शुक्राचार्य कि इस तपोभूमि पर भगवती स्वयं इक्कीस हजार बीज मंत्र के आह्वान करने पर ही प्रसन्न हो जाती हैं। यहाँ श्रेष्ठ साधक व आचार्य संकल्प ले कर तमाम समस्याओं के निदान हेतु हर प्रकार के प्रयोग पूर्ण निष्ठा और पवित्रता व संकल्प तथा हट करके साधक इस कार्य को पूर्ण करते हैं। विश्व भर से से यहाँ लोग आकार यहाँ प्रयोग कराते हैं।

पिताम्बरा का ये बगुला खड्ग प्रयोग गुरू से समझ कर करें अन्यथा शत्रु द्वारा चौर अस्त्र, कालरात्रि, अधोर सुदर्शन अस्त्र या पकछीराज अस्त्र प्रयतंगरा आदि प्रयोगो से भारी नुक़सान पहुँचाया जा सकता है। ये एक स्तम्भन अस्त्र है तथा आहवान करने वाले ज़रूर कौलाचार्य द्वारा दीक्षित हो, अन्यथा स्वतः का भी स्तम्भन हो सकता है। इसी लिए बगुलामुखी का कोइ भी आहवान दीक्षा के बगेर करने पर मृत्यु रोग,घटना दुर्घटना,दुर्भाग्य व स्वतः का स्तम्भन हो जाता तथा मृत्यु पश्चात भयानक ब्रह्माराकछस वनकर भटकना पड़ता है जो स्यम के वशं कुल का ही नाश करता है। आचार्य।