क्या वास्तव में शत्रु की हर गतिविधि का स्तम्भन किया जा सकता है? बगलामुखी ब्रह्मास्त्र-विद्या का पाठ व पूजन अन्य देवताओं की तरह सरल क्यो नही? बगलामुखी का कोई सहज सा भक्ति-मार्ग क्यों नहीं? क्या बगलामुखी शाबर मंत्र क्रिया अत्यधिक प्रभावशाली है? बगलामूखी पाठ व प्रयोग मे अन्तर क्या है तथा कौन किसका अधिकारी है?
भगवती बगलामुखी साधना व साधक—यह क्रम दृण इच्छा शक्ति का है। बगलामुखी की शक्ति जागृत हो जाने पर साधक शत्रुओं के मल, मूत्र तक को रोक कर भयानक बीमारियाँ तक दे सकता है। इससे शत्रुओं का हर तरह से अनिष्ट हो जाता है। आप इस के प्रभाव को इस तरह समझ लें कि आपके शत्रुओं को रस्सियों से बांध दिया है।
परंतु ऐसी विद्या गुरू-शिष्य परम्परा को अनुग्रह करके ही प्राप्त किया जा सकता हैं। ऐसा इसलिए ताकी गुरू स्वत: निर्णय कर ले कि शिष्य इस विद्या को प्राप्त करने योग्य है भी या नहीं। फिर यह क्रिया भी तो सहज नहीं। हाँ यहाँ चालीसा आदि का पठन-पाठन सहज व सरल है और इसे कोई भी कर सकता है। इसे करने का कोई गलत प्रभाव नहीं होगा।
शाबर विद्या: ये एक ख़तरनाक साधना है जिसे गुरु शरण में रह कर ही करना चाहिए। मत्रं मे आन, कसम आदि होने से देवी रूष्ट होकर दण्डित कर भी सकती है तथा साधना मे बली, शमशान-गमन आदी का भी विचार है।
प्रयोग – पुरूषचरण जब तक पूर्ण ना हो जाये तब तक प्रयोगों को सिद्ध नहीं किया जा सकता। प्रयोग के सिद्ध होने पर उसका उपयोग किया जा सकता हैं। परंतु प्रयोग यदि कर्म तो और भी जादा ख़तरनाक है। साधक प्रयोग करने की अवस्था मे कई चरण से गुजर कर प्रयोय कर्म करता है। तो वह साधक ही प्रयोग का अधिकारी है जो स्वयं को जगा चुका है।
आज भगवती बलगमुखी के नाम पर तरह तरह के विचार हैं। लोग मन मुताबिक अपने उद्देश्य हेतू देवी का पूजन करते हैं। इसमे सबसे जायदा प्रसिद्ध है संकल्प लेकर सबसे पहले देवी का पूजन व मंत्र का सवा लाख जप, दशांश हवन, तर्पण, मार्जन, और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज। यहाँ यजमान प्राय: अनिभिज्ञ रहता है कि भगवती बगलामुखी का जप-कर्ता काली कुल से दीक्षित है या श्री कुल से दीक्षित है? क्या देवी-साधक ने पुरुसचरण भी किया है या नहीं। क्योंकि बगलामुखी का आह्वान इस तरह से करने पर यदि कर्ता किसी बगलामुखी उपासक आचार्य, कौल, भैरव द्वारा दीक्षित नहीं हो तब भारी नुकसान होता हैं।
पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पिताम्बरा माँ बगलामुखी के चालीसा का पाठ आप वेसे ही कर सकते हैं जेसे आप बजरंगबली चालीसा का पाठ करते है। यह एक सरल और सहज कर्म है जिसे कोई भी कर सकता है परन्तु ध्यान रहे कि बिना अविनाशी {भैरव} या कौल की दीक्षा के मत्रं जाप करने की आज्ञा नही है। भगवती बगलामुखी समस्त वंश और कुलों के द्वारा पूजित हैं। अत: श्री कुल, काली कुल दोनों द्वारा पूजित है।
॥ दोहा ॥
सिर नवाइ बगलामुखी लिखूं चालीसा आज, कृपा करहु मोपर सदा पूरन हो मम काज॥
॥ चौपाई ॥
१) जय जय जय श्री बगला माता, आदिशक्ति सब जग की त्राता॥
२) बगला सम तब आनन माता, एहि ते भयउ नाम विख्याता॥
३) शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी, असतुति करहिं देव नर-नारी॥
४) पीतवसन तन पर तव राजै, हाथहिं मुद्गर गदा विराजै॥
५) तीन नयन गल चम्पक माला, अमित तेज प्रकटत है भाला॥
६) रत्न-जटित सिंहासन सोहै, शोभा निरखि सकल जन मोहै॥
७) आसन पीतवर्ण महारानी, भक्तन की तुम हो वरदानी॥
८) पीताभूषण पीतहिं चन्दन, सुर नर नाग करत सब वन्दन॥
९) एहि विधि ध्यान हृदय में राखै, वेद पुराण संत अस भाखै॥
१०) अब पूजा विधि करौं प्रकाशा, जाके किये होत दुख-नाशा॥
११) प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै, पीतवसन देवी पहिरावै॥
१२) कुंकुम अक्षत मोदक बेसन, अबिर गुलाल सुपारी चन्दन॥
१३) माल्य हरिद्रा अरु फल पाना, सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना॥
१४) धूप दीप कर्पूर की बाती, प्रेम-सहित तब करै आरती॥
१५) अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे, पुरवहु मातु मनोरथ मोरे॥
१६) मातु भगति तब सब सुख खानी, करहुं कृपा मोपर जनजानी॥
१७) त्रिविध ताप सब दुख नशावहु, तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु॥
१८) बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं, अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं॥
१९) पूजनांत में हवन करावै, सा नर मनवांछित फल पावै॥
२०) सर्षप होम करै जो कोई, ताके वश सचराचर होई॥
२१) तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै, भक्ति प्रेम से हवन करावै॥
२२) दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई, निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई॥
२३) फूल अशोक हवन जो करई, ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई॥
२४) फल सेमर का होम करीजै, निश्चय वाको रिपु सब छीजै॥
२५) गुग्गुल घृत होमै जो कोई, तेहि के वश में राजा होई॥
२६) गुग्गुल तिल संग होम करावै, ताको सकल बंध कट जावै॥
२७) बीलाक्षर का पाठ जो करहीं, बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं॥
२८) एक मास निशि जो कर जापा, तेहि कर मिटत सकल संतापा॥
२९) घर की शुद्ध भूमि जहं होई, साध्का जाप करै तहं सोई,
३०) सोइ इच्छित फल निश्चय पावै, यामै नहिं कदु संशय लावै॥
३१) अथवा तीर नदी के जाई, साधक जाप करै मन लाई॥
३२) दस सहस्र जप करै जो कोई, सक काज तेहि कर सिधि होई॥
३३) जाप करै जो लक्षहिं बारा, ताकर होय सुयश विस्तारा॥
३४) जो तव नाम जपै मन लाई, अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई॥
३५) सप्तरात्रि जो पापहिं नामा, वाको पूरन हो सब कामा॥
३६) नव दिन जाप करे जो कोई, व्याधि रहित ताकर तन होई॥
३७) ध्यान करै जो बन्ध्या नारी, पावै पुत्रादिक फल चारी॥
३८) प्रातः सायं अरु मध्याना, धरे ध्यान होवै कल्याना॥
३९) कहं लगि महिमा कहौं तिहारी, नाम सदा शुभ मंगलकारी॥
४०) पाठ करै जो नित्या चालीसा॥ तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा॥
॥ दोहा ॥
गुरू शरण को धन्य है,भक्त जो शरण में आये।
कृपा करो पीतांबरा , दुष्ट, शमन् हो जाये।।
।।आरती ।।
जय जयति सुखदा, सिद्धिदा, सर्वार्थ – साधक शंकरी।
स्वाहा, स्वधा, सिद्धा, शुभा, दुर्गानमो सर्वेश्वरी।।
जय सृष्टि-स्थिति-कारिणि-संहारिणि साध्या सुखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम् , मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय प्रकृति-पुरूषात्मक-जगत-कारण-करणि आनन्दिनी।
विद्या-अविद्या, सादि-कादि, अनादि ब्रह्म-स्वरूपिणी।।
ऐश्वर्य-आत्मा-भाव-अष्टम, अंग परमात्मा सखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय पंच-प्राण-प्रदा-मुदा, अज्ञान-ब्रह्म-प्रकाशिका।
संज्ञान-धृति-अज्ञान-मति-विज्ञान-शक्तिविधायिका ।।
जय सप्त-व्याहृति-रूप, ब्रह्म विभू ति शशी-मुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
आपत्ति-अम्बुधि अगम अम्ब! अनाथ आश्रयहीन मैं।
पतवार श्वास-प्रश्वास क्षीण, सुषुप्त तन-मन दीन मैं।।
षड्-रिपु-तरंगित पंच-विष-नद, पंच-भय-भीता दुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय परमज्योतिर्मय शुभम् , ज्योति परा अपरा परा।
नैका, एका, अनजा, अजा, मन-वाक्-बुद्धि-अगोचरा।।
पाशांकुशा, पीतासना, पीताम्बरा, पंकजमुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
भव-ताप-रति-गति-मति-कुमति, कर्त्तव्य कानन अति घना।
अज्ञान-दावानल प्रबल संकट विकल मन अनमना।।
दुर्भाग्य-घन-हरि, पीत-पट-विदयुत झरो करूणा अमी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
हिय-पाप पीत-पयोधि में, प्रकटो जननि पीताम्बरा!।
तन-मन सकल व्याकुल विकल, त्रय-ताप-वायु भयंकरा।।
अन्तःकरण दश इन्द्रियां, मम देह देवि! चतुर्दशी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
दारिद्रय-दग्ध-क्रिया, कुटिल-श्रद्धा, प्रज्वलित वासना। वासना।
अभिमान-ग्रन्थित-भक्तिहार, विकारमय मम साधना।।
अज्ञान-ध्यान, विचार-चंचल, वृत्ति वैभव-उन्मुखी।|
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
प्रणाम आदि कर बिहार करे.
प्रारंभ से तंत्र का प्रयोग संहार कर्मों में ही हुआ है परंतु आज के इस युग में सबसे अधिक महादेवी का आह्वान राज्य-चुनाव और कानूनी-मामलों में विजय प्राप्त हेतु या कोर्ट कचहरी व शत्रु को स्तमभ करने के लिए किया जाता हैं। अत: यह तत्रं शास्त्र ना होकर मात्र शस्त्र है और साधू, सतं, ज्योतषी, वास्तु शास्त्री, अन्य अध्यात्म से जुड़े लोग इसे आज शस्त्र की दृष्टि से ही देखते हैं। जितने भी सीखने वाले लोग हैं वे भी शस्त्र के रूप में ही इस तंत्र को प्राप्त करना चाहते हैं। परन्तु पूर्ण विधि-विधान का पालन किए बिना एवं बिना गुरु के सानिध्य के बगला अस्त्र का आह्वान करने वाला स्वयं का भी स्तम्भन कर सकता है। आचार्य