विश्व में सबसे ज्यादा अगर कोई आकर्षण व रहस्य का विषय है तो वह है अघोरी. वह जो कापालिक क्रिया करते हैं. वह जो तांत्रिक साधना में श्मशान में रत रहा करते हैं और वह जो मुर्दे की भस्म से लिपटे होते हैं जो जिनसे आम-जन स्वाभाविक तौर पर डरता हैं.
महादेव का रूप धारण करने वाले, बिलकुल उन्हीं की तराह व्यवहार करने वाले, उनके साथ खड़े होने पर अनजानी शक्तियों को अहसास अघोरी की मोजुदगी से ही आभास सबसे अलग होता है.
लगभग सभी घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान के सन्नाटे में एकांत वातावरण में रात्रि में गुप्त रूप से जाकर तंत्र-क्रियाओं को अंजाम देते हैं. यह सत्य है की अघोरी रहस्यमयी साधनाएं करते हैं. वहीँ वास्तव में अघोर विद्या डरावनी नहीं है. अपितु उसका स्वरूप दिखने में डरावना होता है. अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हैं ना ही छूआछूत का ना ही अन्य.
अघोर बनने की पहली शर्त है संसार में सब कुछ समान व अपने मन से घृणा और भय को निकालना है. अघोर साघना व क्रिया व्यक्त को सहज और सरल बनाती है. मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जो शमशान जैसी भयावह व अन्य जंगल पहाड़ी और विचित्र ही जगह पर सहजता से रह सके जैसे लोग अपने घरों में सामान्य स्थिति में रहते हैं.
ऐसा माना जाता है कि अघोरी मानव के मांस का सेवन भी करता है. परन्तु ये धारणा ग़लत है. अत: सत्य तो ये है की सब कुछ बराबर दृष्टि से देखो ये अत्यधिक प्राचीन है तथा समाजीकरण में जातीयो के भेदभाव को मिटाने, ऐकोहम् का परिचय है; व अन्य जो समाज में भेदभाव करते हैं उनको ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा भेदभाव नफ़रत निकल जाए. जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है. लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है. तथा जन्म से सब शूद्र हैं ज्ञान व तपस्बी पूजने योग्य है.
अत: छूआछूत भेदभाव से त्यागी हूई वस्तु भी सृष्टि का ही अंग है अत: जव सृष्टि भेदभाव नहीं करती तो अन्य विचारधारको की भिन्न धारणा क्यों.
अघोर विद्या भी व्यक्ति को हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा देती है. अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है. अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है.
अघोरी इस संसार में त्याग का परिचय है.
अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं. अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है. आचार्य