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रक्षोहणं वलग-हनं वैष्णवीमिदमहं तं वगलमुत्किरामि।

 

बगलामुखी पीठ (मंदिर) रूपाली एन्कलेव
कराला – 110081.
सम्पर्क: 9810487266, 7011438360

 

 

प्रोग्राम

भण्डारा:  सुबह 11 बजे से 2 बजे तक (कड़ी चावल व केशर पेठा)
कीर्तन भजन: संध्या 4 से रात्रि 8 बजे तक

वीर रात्री

मङ्गलवार-युक्त चतुर्दशी, मकर, कुल-नक्षत्रों से युक्त ‘वीर-रात्रि कही जाती है। इसी की ‘ अर्ध-रात्रि’ में श्रीबगला का आविर्भाव हुआ था। विशेष रात्रि में बगलामुखी सम्पुट सहित शतचंडी महायज्ञ शत्रु शमन् हेतु होगा।

अवतार

वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर भगवती का दर्शन, पूजन, प्राथना, अर्चना, व्रत, व्रत-कथा, भजन-कीर्तन, आह्वान, ध्यान, यज्ञ, आदि कर आशीर्वाद प्राप्त करते है।

 

 

अस्य सहसः ईशाना’ सारे जगत् पर जिसका शासन है उन ‘विष्णु-पत्नी’ अर्थात् विष्णु की रक्षा करनेवाली, वृहस्पति, मात-रिश्वा और वायु-रूपवाली, ‘संध्वाना’ शब्द-तत्त्व का कारण, ‘वाता’ वात-क्षोभ को शान्त करनेवाली, ‘अभितो गृणन्तु’ हमें उभय-लोक में भुक्ति एवं मुक्ति अर्थात् ‘स्वर्गापवर्ग-प्रदे’ प्रदान वरनेवाली श्रीबगला विद्या को बताता है।

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बगलामुखी का पूजा अर्चना पीले वस्त्र पीले पुष्प व पीली ही मिठाई से की जाती हैं। भगवती को हल्दी अत्यधिक प्रिय है व ज्योति भी धर्त में हल्की मिलाकर लगानी चाहिए या फिर सरसों का तेल भी ज्योति में विशेष चलता है। पीले पुष्प, पीली चुनरी, नारियल पंच-मेवा चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करने से विशेष फल प्राप्त होते है।

बगलामुखी जयंती, भगवती राज्य राजेशवरी  बगलामुखी माता के अवतार दिवस को बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। इन्हें माता पीताम्बरा व ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहा जाता है। ज़्यादातर साधक लोग शत्रु शमन हेतु भगवती का आह्वान करते हैं। देवी राज्य राजेशवरी है तो राजनीति में अधिकतर नेता पद, प्रतिष्ठा, चुनाव हेतु टिकट व विजयी हेतु विशेष प्रयोग कर करने पर विजय प्राप्त करते है, तंत्र शास्त्रों में वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना  विशेष तौर पर की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर  प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.

कृष्ण-यजुर्वेद’ की काठक-संहिता में दो मन्त्र आए हैं, जिनसे श्रीबगला विद्या का वैदिक रूप प्रकट होता है- विराड्-दिशा विष्णु-पत्यघोरास्येशाना सहसो या मनोता । विश्व-व्यचा इषयन्ती सुभूता शिवा नो अस्तु अदितिरुपस्थे।। विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्या अस्येशाना सहसो विष्णु-पत्नी। वृहस्पतिर्मातारश्वोत वायुस्संध्वाना वाता अभितो गृणन्तु ॥ (काठक संहिता, २२ स्थानक, १, २ अनु० ४९, ५०)

अर्थात् – विराट् दिशा’ दशों दिशाओं को प्रकाशित करनेवाली, ‘अघोरा’ सुन्दर स्वरूपवाली, ‘विष्णु-पत्नी’ विष्णु की रक्षा करनेवाली वैष्णवी महा-शक्ति, ‘अस्य’ त्रिलोक जगत् की ‘ईशाना’ ईश्वरी तथा ‘सहसः ‘महान् बल को धारण करनेवाली ‘मनोता’ कही जाती है।

‘मनोता’ का विवेचन ऐसा किया गया है-वाग् वै देवानां मनोता तस्यां हि तेषां मनांसि ओतानि अग्निर्वै देवानां मनोता तस्मिन् हि तेषां मनांसि ओतानि! गौर्हि देवानां मनोता तस्यां हि तेषां मनांसि ओतानि | | (ऐतरेय ब्राह्मण २, १०)

अर्थात् देवताओं का मनस्तत्त्व वाक्, अग्नि और गौ में ओत-प्रोत है। अत: इन तीनों शक्तियों के समुदाय को मनोता’ कहते हैं।

‘विश्व -व्यचा’ अन्तरिक्ष लोक-स्वरूप समस्त नक्षत्र-मण्डल में प्रकाशित होनेवाली (‘अन्तरिक्षं विश्व-व्यचाः ‘तैत्तरीय ब्राह्मण ३-२-३७)।

‘इषयन्ती’ समस्त जगत् को प्रेरित करनेवाली इच्छा-शक्ति-रूपा।

‘सुभूता’ आनन्दार्थ अनेक रूपों में आविर्भाव होनेवाली।

‘अदितिः’ अविनाशी-स्वरूप देव-माता ‘उपस्थे’ हम उपासकों के समीप, ‘शिवा’ कल्याण-स्वरूपवाली, ‘अस्तु’ हो।

‘दिवः विष्टम्भ:’ अर्थात् दिव-लोक का स्तम्भन करनेवाली।

इस प्रकार ‘कृष्ण यजुर्वेद’ के उक्त मन्त्र में आया ‘विष्टम्भः’ पद श्रीबगला विद्या के प्रसिद्ध ‘स्तम्भन’-तत्त्व को बताता है।

‘धरुणः पृथिव्याः’ पद पृथिवी तत्त्व की प्रतिष्ठा बताता है-‘प्रतिष्ठा वै धरुणम्’ (शतपथ ब्राह्मण ७-४-२-५)।

श्रीबगला विद्या का बीज पार्थिव है-‘बीजं स्मेरत् पार्थिवम्’ तथा बीज-कोश में इसे ही ‘प्रतिष्ठा कला’ भी कहते हैं।

बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

बगलामुखी ब्रह्मास्त्र स्तम्भन अस्त्र के रूप में शास्त्रों में वर्णन है साघक तांत्रिक लोग देवी की सिद्धि प्राप्त कर समस्त जीव निर्जीव को स्तम्भन करने में सामर्थ्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं। तथा वाक् पटुता अपनी वाणी से जगत् विजयी होते हैं। शास्त्रार्थ में विजयी होते हैं। भगवती की कृपा से शत्रु ,रोग,क़र्ज़ कोर्ट ,कचहरी मुक़दमा मे निश्चय विजय प्राप्त होती हैं।

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बगलामुखी जयंती पर दैत्य गुरू शुक्राचार्य की तपोभूमि पर प्राचीन पिण्डी रूप के अलावा बगलामुखी की पुनः मूर्ति भी

वैशाख  शुक्ल अष्टमी पर ही स्थापित की गई।

प्राचीन पिण्डी यह स्थान एक किंवदंती दैत्य गुरू शुक्राचार्य की तपोभूमि के रूप विख्यात थीं ,बगलामुखी तंत्र पीठ रूपाली 19अकटूबर एं2007. शुक्ल पक्ष की दुर्गाष्टमी को भगवती के मंदिर का उद्घाटन कांग्रेस के जाने माने नेता श्री सज्जन कुमार के द्वारा हुआ और उन्होंने देवी के चमत्कारों को मानते हुए अपने ही पैसे से प्रथम बार इन खेतों में व शिरू हुई इस कच्ची कालोनी में सड़क का निर्माण कराया अब यह स्थान बगलामुखी पीठ रूपाली एन्क्लेव कराला 110081. के नाम से जानीं जाती हैं विश्व भर से यहाँ साघक याचक दूर दूर से देवी के दर्शन हैतू पहुँचते है।

“स्वतन्त्र तन्त्र’ में भगवान् शङ्कर, पार्वती जी से कहते हैं कि ‘हे देवि! श्रीबगला विद्या के आविर्भाव को कहता हूँ। पहले कृत-युग में सारे जगत् का नाश करनेवाला वात-क्षोभ (तूफान) उपस्थित हुआ। उसे देखकर जगत् की रक्षा में नियुक्त भगवान् विष्णु चिन्ता-परायण हुए। उन्होंने सौराष्ट्र देश में ‘हरिद्रा सरोवर’ के समीप तपस्या कर श्रीमहा-त्रिपुर-सुन्दरी भगवती को प्रसन्न किया। श्री श्रीविद्या ने ही बगला-रूप से प्रकट होकर समस्त तूफान को निवृत्त किया। त्रैलोक्य-स्तम्भिनी ब्रह्मास्त्र बगला महा-विद्या श्री श्रीविद्या एवं वैष्णव-तेज से युक्त हुई।

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भगवती बगला का वास्तविक रूप आभिचारिक प्रसङ्गों में श्रीबगला विद्या की प्रधानता होने से बहुत से लोग इन्हें ‘तामसिक शक्ति’ कहते हैं। ‘कामधेनु-तन्त्र’ में तामस प्रकरण में ही इनकी गणना की गई हैं और ‘कल्याण’ के शक्ति-अङ्क के ‘दश महा-विद्या’ शीर्षक लेख में पं० मोतीलाल शर्मा ने शत्रु-निरोध में ही इस विद्या का उपयोग लिखा है, परन्तु यह बात एक-देशीय है, प्रधानता के अभिप्राय में ही है, वास्तविक रूप से नहीं। ‘शक्ति-सङ्गम-तन्त्र’ (तारा-खण्ड) में तो श्रीबगला को त्रि-शक्ति-रूप में माना गया है- सत्ये काली च श्रीविद्या, कमला भुवनेश्वरी । सिद्ध-विद्या महेशानि!, त्रिशक्तिर्बगला शिवे! । ।

अत: श्रीबगला माता को तामस मानना ठीक नहीं है। आभिचारिक कृत्यों में रक्षा की ही प्रधानता होती है। यह कार्य इसी शक्ति द्वारा निष्पन्न होता है। इसीलिए इसके बीज की एक संज्ञा ‘रक्षा-बीज’ भी है (देखिए, मन्त्र-योग-संहिता)- शिव-भूमि-युत शक्ति-नाद-विन्दु-समन्वितम्। वीजं रक्षा-मयं प्रोक्तं, मुनिभिर्ब्रह्म-वादिभि:।।

“यजुर्वेद’के प्रसिद्ध ‘आभिचारिक प्रकरण’ में अभिचार-स्वरूप की निवृत्ति में इसी शक्ति का विनियोग किया गया है। इस प्रकरण का ‘यजुर्वेद’ की सभी संहिताओं (तैत्तरीय, मेत्रायणी, काक, काठक, माध्यन्दिनि, काण्व) में समान-रूप से पाठ आया है।

‘माध्यन्दिनि संहिता’ के भाष्य-कर्त्ता उव्वट, महीधर भाष्यकारों ने जैसा अर्थ इसका लिया है, उसका सार यहाँ देते हैं। पं० ज्वालाप्रसाद कृत मिश्र भाष्य में इसका हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है।

“शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिनि संहिता‘ के पाँचवें अध्याय की २३, २४, २५ वीं कण्डिकाओं में अभिचार-कर्म की निवृत्ति में श्रीबगला महा-शक्ति का वर्णन इस प्रकार आया है- ‘रक्षोहणं वलग-हनं वैष्णवीमिदमहं तं वगलमुत्किरामि । ‘अर्थात् ‘राक्षसों द्वारा किए गए अभिचार की निवृत्ति के लिए वैष्णवी महा-शक्ति को प्रतिपादन करनेवाली महा-वाणी को इन्द्र से कहो’ इत्यादि प्रसङ्ग में बगला-मुखी विद्या का स्वरूप वेद ने परम-रहस्य रूप से बताया है।वेद में तन्त्र-शास्त्र – प्रसिद्ध बगला-पद ‘वलगा’-इस व्यत्यय नाम से कहा जाता है ।इसका अर्थ उव्वट ने ऐसा किया है-

‘वलगान् कृत्या -विशेषान् भूमौ निखनितान् शत्रुभिर्विनाशार्थं हन्तीति वलगहा तां वलग-हनम् ।अर्थात् ‘शत्रु के विनाश के लिए कृत्या-विशेष भूमि में जो गाड़ देते हैं, उन्हें नाश करनेवाली वैष्णवी महा-शक्ति को वलगहा कहते हैं।’ यही अर्थ वगला-मुखी का भी है।

‘खनु अवदारणे ‘ इम धातु से मुख’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ मुख में पदार्थ का चर्वण या विनाश ही अभिप्रेत होता है। इस प्रकार शत्रुओं द्वारा किए हुए अभिचार को नष्ट करनेवानी महा-शक्ति का नाम ‘बगला-मुखी’ चरितार्थ होता है। श्रीमहीधर ने इसका स्पष्ट अर्थ ऐसा किया है-‘पराजयं प्राप्य पलायमानं राक्षसैरिन्द्रादि-वधार्थमभिचार-रूपेण भूमौ निखाता अस्थि केश-नखादि-पदार्था: कृत्या-विशेषा वलगाः।अर्थात् ‘ इन्द्रादि देवताओं द्वारा पराजित होकर भागे हुए राक्षसों ने देवताओं के बध के लिए अस्थि, केश, नखादि पदार्थों के द्वारा अभिचार किया।’‘तैत्तरीय ब्राह्मण’ में भी कहा है- असुरा वै निर्यन्तो देवानां प्राणेषु वलगान् न्यखनन् अर्थात् देवताओं को मारने के लिए असुरों ने अभिचार किया।‘शतपथ ब्राह्मण’ (३-४-३) में भी इसे इस प्रकार बताया है-‘यदा वै कृत्यामुत्खनन्ति अथ सालसाऽमोघाऽभि- भवति तथा एवैष एतद्-यस्माअत्र कश्चित् द्विषन् भ्रातृव्यः कृत्यां वलगान् निखनति तानेवैतदुत्किरति ।उक्त ही अर्थ इस वचन का भी है। ‘वलगा’का अर्थ महीधर ने इस प्रकार किया है- ‘यस्य बधार्थं क्रियते तं वृण्वन्नाच्छादयन् गच्छतीति वलगः।’अर्थात् ‘जिसके वध के लिए कृत्या का प्रयोग किया जाता है, उसे गुप्त रीति से मार देता है।’ इसीलिए महर्षि यास्क ने ‘वलगो वृणौतः’ (निघण्टु ६) वृञ् आच्छादने’ घातु से बनाया है। ‘वलगान्’ इसी द्वितीयान्त पद के अनुकरण से ‘बगला’ तान्त्रिक नाम निष्पन हुआ है।भगवती के ‘बगला-मुखी’ इस संज्ञा नाम की सिद्धि पर वैयाकरण लोग आपत्ति करते हैं कि यह नाम अशुद्ध है क्योंकि ‘नख-मुखात् संज्ञायाम्’ इस सूत्र से डीष्’ प्रत्यय का निषेध होकर आ-प्रत्यय होकर ‘बगला-मुखा’ ही नाम शुद्ध है, परन्तु ‘स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्’ इस सूत्राधिकार से उक्त सूत्र की प्रवृत्ति होती है। यहाँ ‘मुखी’ शब्द स्वाङ्ग-वाची नहीं है। बगला के नि:सारण में ही ‘मुख’ शब्द का प्रयोग है। ‘मुखं निःसरणम् इत्यमरः’ तथा ‘मुखमुपाये प्रारम्भे श्रेष्ठे निःसरणास्ययोः इति हैमः ‘। उपाय, प्रारम्भ, श्रेष्ठ, नि:सरण और मुख के अर्थ में ही ‘मुखशब्द का प्रयोग होता है। और प्रमाण के तौर पर भगवती बगलामुखी के तमाम साघक आज मौजूद हैं व देवी का चमत्कार दर्शनार्थी स्यम् कष्टों से छुटकारा पा कर प्राप्त करते है यह सबसे बड़ा प्रमाण है।

सिद्धि-प्रदा श्रीबगला-मुखी  “राष्ट्र-गुरु’ श्री स्वामी जी महाराज ने भगवती भगवती बगलामुखी से विशेष परिचय कराया व अपने विभिन्न  चमत्कार जो किसी परिचय के मोहताज नहीं स्यम् में  व बगलामुखी के समस्त साघक सदा सदा उनके ऋणी है प्रणाम करते हैं