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 माँ भगवती बगलामुखी पीताम्बरा

|| जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ||

माँ बगलामुखी पीताम्बरा का संक्षिप्त परिचय


Read in English  बगलामुखी साधना पीठ ≫ देवी बगलामुखी

मेरू तंत्र में दो कथाओं का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि क्षीर सागर में विश्राम करते हुए भगवान लक्ष्मीनारायण विष्णु जी को जब संसार में अपने भक्तों की रक्षा की चिंता हुई तब उन्होंने कठोर तपस्या की जिससे सौराष्ट्र के पीत सरोवर में महात्रिपुर सुंदरी के तेज से पीतांबरा देवी का आर्विभाव वीर रात्रि के रूप में हुआ।

प्रथम कथा

एक बार सतयुग में अचानक ही महाविनाश उत्पन्न करने हेतु भयंकर तूफान उत्पन्न हुआ। इसके कारण संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा और चारों ओर हाहाकार मच गया। प्राणीयो के प्राण संकट में पड़ गए तथा संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। इसे देख कर भगवान नारायण चिंतित हो गए।

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब स्यम् भगवान शिव ने कहा शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता, अत: आप उनकी शरण में जाएं। तप से उनैह प्रसन्न करें। ये सुन तब भगवान नारायण ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया।

भगवान विष्णु ने भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आह्वान “ह्री” वीज मत्रं से शुरू किया लेकिन ऐसा करते करते समय अन्तराल में उनके मुख से “ह्रीं” की जगह “ह्लीं” निकलने  लगा। इस कारण महात्रिपुर सुंदरी प्रसन्न तो हुई लेकिन भगवती बगलामुखी रूप में सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रकट हुईं।उस समय भगवती पीताम्बर वर्ण की थी और पूर्ण रूप से पीले वस्त्र और आभूषण धारण किये हुयीं थीं. इस कारण महादेवी को पितामबरा माँ भी कहा जाता है। एक मत अनुसार भगवती महात्रिपुर सुंदरी जब बगलामुखी के रूप प्रगट हुईं तो वह हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करने लगीं और उसी कारण से उन्हें पीताम्बर या महापीतांबरा देवी भी कहा गया. महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ जिसके वह से भयंकर तूफान थम गया।

ma parvati ma tripur sundari ma baglamukhi
माँ पार्वती, माँ त्रिपुर सुन्दरी, माँ बगलामुखी

जिस समय भगवती असुर का संघार करने के लिए क्रोधित हुईं तब उसने भगवती  के क्रोध को जान कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूद्र, और शदाशिव का पंच-अस्त्रों के रूप में आह्वान किया। तब भगवती भयानक रूप धारण कर आसुरी बगला के रूप में प्रकट हुयीं और पंच-अस्त्रों–ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूद्र, और शदाशिव–को पकड़ कर अपना कमला आसन बना कर बैठ गयी।

समय अन्तराल में इन्हीं पंच-अस्त्रों के कमला आसन को पंच-प्रेत आसन की संज्ञा दे गयी. इसी आसन पर बिराजमान होकर महादेवी ने कलल नामक असुर की जिह्वा पकड़ बज्र से एक ही प्रहार कर सघारं कर दिया. उस समय स्वयं ही असुर की समस्त शक्तियों को छीनकर आसुरी रूप में प्रकट हो भगवती असुर मार पंच-प्रेत आसन बाली भगवती आसुरी बगलामुखी केहलाई।

विष्णु जी की तपस्या के फलस्वरूप महात्रिपुर सुंदरी के तेज से पीतांबरा देवी का आर्विभाव वीर रात्रि के रूप में हुआ। जब सूर्य मकर राशिस्थ होने पर मंगलवार के दिन चतुर्दशी हो और उसी दिन मकरकुल नक्षत्र (भरणी, रोहिणी,पुष्य, उ.फा.,चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पू.षा., श्रवण, उ.भा, नक्षत्र) पड़े तो उसे वीर रात्रि कहा जाता है। इसी रात्रि में मां पीतांबरा बगलामुखी का अविर्भाव हुआ था।

दूसरी कथा:

एक अन्य धारणा अनुसार महाप्रलय के समय भयंकर तूफान आया। उस दौरान देवा धिदेव भगवान शंकर से संसार की रक्षा के लिए सभी देवी-देवताओं ने प्रार्थना की। तब भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से एक अद्भुत शक्ति का पार्दुभाव हुआ, जिसे बगलामुखी परा शक्ति के नाम से जाना गया। इन्हें ही बगलामुखी देवी कहा जाता है।

मकर मरकुल नक्षत्र में प्रकट हुईं भगवती बगलामुखी मां को दस महाविद्या में अष्टमी महा विद्या के रूप में पूजा जाता है.

बगलामुखी देवी रत्नजड़ित सिहासन पर विराजती होती हैं। रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता। वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करने व पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।

देवी बगलामुखी को वीर रात्रि भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।

देवी राजयोग की देवी हैं। सत्ता-असत्ता इनके अधीन हैं। इसलिए नेता भी इनकी शरण में जाते हैं। देवी कल्याण की देवी हैं। इनको अन्याय पसंद नहीं। यह न्याय की देवी हैं। अधर्म, पाप और अनुचित कामना इनको पसंद नहीं। कैसा भी संकट आये, यह उनको दूर कर देती हैं। अन्य देवियों से इनकी आराधना का विधान अलग है। इनकी मानसिक पूजा है। यंत्र, तंत्र, और मंत्र तीनों ही रूपों में इनकी पूजा की जाती है।