विश्व के हर कोने में महादैव के भक्त अनयाई मोजुद है. शैव विश्व का सबसे प्राचीन सम्प्रदाय है. भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं।
[1]शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं।
[2] 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए।
शैव धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्य:
(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है।
(2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।
(3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है।
(4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है।
(5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है।
(6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है।
(7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है:
(i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत
(8) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।
(9) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।
(10) कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र ‘शैल’ नामक स्थान था।
(11) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे।
(12) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे।
(13) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था।
(14) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।
(15) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा।
(16) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है।
(17) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया।
(18) ऐलेरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया।
(19) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।
(20) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव और नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।
(21) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं:
(i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल
(22) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं:
(i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव
(23) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं:
(i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई
(24) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं:
(i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर
(25) शैव सम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार हैं:
(i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं।
(ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं।
(iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
(iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं।
(v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
(vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
(vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।
(viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है।
(ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
(x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं।
(26) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।
जो पुराणिक या उपनिषद से कथाये व वेदों में जीस प्रकार महादैव व रूद्र का वर्णन मिलता है वह अत्यधिक प्राचीन है साथ सृष्टि उत्पत्ति का विवरण महादैव को सृष्टि सृजन कर्ता शास्त्रो में भी तर्क पूर्ण दर्शाया है तव संदेह और संदेह के कारण समाप्त हो जाते हैं फीर सृष्टि सृजन से ज़ूड़ा आज डार्क मेटर थ्योरी भी वेदोंक्त सृष्टि-उत्पत्ति सूक्त ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में डार्क मैटर व डार्क एनर्जी का उल्लेख व आज ये भी स्पष्ट जब खूद नासा वैदो की तरफ़ दोड़ रहा फीर और समस्त शोध वेदों पर यहीं प्रमाण प्रत्यक्ष हैं ईश्वर के प्रति संदेह फीर क्यों जब तक तुम्हारे समर्पण में छल है ईश्वर के प्रति संदेह फीर ईश्वर भी दूर और अन्य समस्त कष्टों के साथ परीक्षा मनुष्य ईश्वर की और ईश्वर मनुष्यों की क्यों नहीं. आचार्य