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शत्रुओं द्वारा कृत्या-प्रयोग को अन्य शब्दों में नुक़सान पहुँचाने हेतु काला जादू (Black Magic) के नाम से भी  जाना जाता है। तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म कृत्या के नाम से वेदों में व अनेकों ग्रंथों में तथा ख़ासकर तंत्र ग्रंथों उल्लेख मिलता है। टोने टोटके करने बाले जितने भी साधक जो सेबड़े, स्याने, औझा, भगत, भौपा तांत्रिक मात्रिकों के दुबारा प्रहार करते समय मछली, मुर्ग़ा, बकरा, भैड़, बतख़, कौआ आदि की बलि ईष्ट को प्रदान करते हैं। वह अपने देवता को संतुष्ट करके प्रहार करते है, और यह समाज में अत्यधिक देखा गया है।

जिसके उपर प्रयोग करना हैं उसके वस्त्र, बाल, नख, पैर के तलवे की मिट्टी; यहा तक कि थूक, मल, मूत्र की मिट्टी उठा कर उस पर प्रयोग करते हैं।

शास्त्रों में व शाबर, डामर तंत्र में यह वर्णन प्राप्त होता है जो की टोना करके दुकान, व्यापार, अग्निशाला, पाक शाला, वाहन, मशीनरी, सेना, समूह, मित्र मंडली, ग्राहकों का, गायन विद्या का, भूमि व शरीर का स्तंभन, बंधन भयानक रोग हेतु ,मुक़द्दमा में हारने हेतु, किसी स्त्री पर वशीकरण करना हो या तोड़ना हो, तथा विपरीत परिस्थितियों में भी तब भी बँगला सूक्त इस स्तोत्र के पाठ से ही ज़्यादा फ़ायदा व संकट दूर होते हैं |

पशु व मनुष्य की भी अस्थि, चर्म, नख, केश, सप्त धान्य, अनुष्ठान यग्य द्वारा शाबर मंत्रों के माध्यम से या देवता को आन कसम देकर तैयार की हुई कृत्या अथवा कुछ तांत्रिक अभिचार द्वारा खिलाई गई कृत्या का शमन भी आसानी से हो जाता है |

कुछेक साघक दुर्गा शपतशति के हरेक अध्याय के बाद बगला सूक्त पाठ करना भी अति शुभ माना जाता है |

तथा कुछेक साघक इसका संकल्प लेकर जजमान अत: जो पिड़ीत है उसके लिए इसके निरंतर जप से अत्यधिक फ़ायदा व पूरी तराह समाधान स्पष्ट देखने में आया है,

आपको आपके व्यापार, कैरियर संतान ना होने के लिए भी या असाध्य रोग उच्चाटन आदि को नुक़सान पहुँचाने की प्रवृत्ति से ही यह सब करते है,वेदों में भी इस प्रकार के प्रयोगों को नष्ट करने के उद्देश्य से ही बंगला सूक्त का वर्णन हे तथा इस से बचाव के लिए यह विघान है जो प्रभाव शाली है।

‘‘अथर्वेद से’’

बगला सूक्त-कृत्या परिहणम्

संकल्प – ऊँ तत्सद्य ……………. प्रसाद सिद्धी द्वारा मम यजमानस्य (नाम दें) सर्वाभीष्ठ सिद्धिर्थे पर प्रयोग, सर्व मंत्र-तंत्र-यंत्र टोना टोटका कृत्या विनाशार्थे, सर्व दुष्ट ग्रहे बाधा निवाणार्थे, सर्व उपद्रव शमनार्थे श्री भगवती पीताम्बरायाः बगला सूक्तस्ये ग्यारह सहस्त्र पाठे अहम् कुर्वे।

(जल पृथ्वी पर डाले दें)

सर्व प्रथम एक घिया ले उसे चाकू से मछली की आकृति काट कर बना लें व भगवती को घिया से बनीं मछली अर्पित करें पश्चात पाठ करें व ग्यारह हजार पाठ के उपरान्त हवन कर भवगती को पुनः मछली भेंट करें।

घीया मछली भेंट करना: – मछली की जगह घीया की मछली बना कर ठीक से चाकू से मछली का आकृती काट ले,या फीर आप आटा गूँथे जिसमें काला तिल अधिक हो, इसकी मछली बनाकर ,प्रयोग मे ले।

घीया मछली पर  आंखों के स्थान पर एक-एक लौंग लगा कर इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें फिर गाय या भैंस के गोबर से बने कड़े (गोस्सा )पर सरसों के तेल से माँ पिताम्बरे बगलामुखी के नाम से होमा कर दीपक जयोति जलाबे  घीया मछली भगवति को अर्पित करे परन्तु प्रथम मछली प्राण प्रतिष्ठा करने के पश्चात बगला सूक्त का पाठ का बिधान है।

मछली की जगह घीया या आटे की ही मछली बना कर  उसकी प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है।

अभिचार अत:दुष्ट तांत्रिक के विधान को नष्ट करना-बगला सूक्त दुबारा।

बगला सूक्त-कृत्या परिहणम् ‘‘अथर्वेद से’’

संकल्प – ऊँ तत्सद्य ……………. प्रसाद सिद्धी द्वारा मम यजमानस्य (नाम दें) सर्वाभीष्ठ सिद्धिर्थे पर प्रयोग, पर मंत्र-तंत्र-यंत्र विनाशार्थे, सर्व दुष्ट ग्रहे बाधा निवाणार्थे, सर्व उपद्रव भूत ,प्रेत ,कृत्याये शमनार्थे श्री भगवती पीताम्बरायाः बगला सूक्तस्ये ग्यारह सहस्त्र पाठे अहम् कुर्वे।उच्चारण करते हुए (जल पृथ्वी पर डाले दें)

सर्व प्रथम भगवती को मछली अर्पित कर पाठ करें व ग्यारह हजार पाठ के उपरान्त हवन कर भवगती को पुनः मछली भेंट करें।

मछली भेंट करना: – गेहूं के आटे में उड़द का आटा मिला कर गूँथे थोड़ी मात्रा सरसों का तेल मिला लें पश्चात

काले तिल मिलाकर , इसकी एक मछली बनाये,तथा आंखों के स्थान पर एक-एक लौंग लगा कर मछली की प्राण प्रतिष्ठा करें ,फिर कड़े (गाय या भैंस के गोबर का सुखाकर बनाया गया जिंसें कड़ा कहा जाता है ) पर सरसों के तेल से एक जयोति जला कर  यह मछली भगवति को अर्पित करें तथा बगला सूक्त का पाठ आरम्भ करदें।

मछली की प्राण प्रतिष्ठा:- विनियोग – ऊँ अस्य प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा, विष्णु, रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामनिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता, आं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्रांे कीलकम् मछली प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः (जल भूमि पर डाल दें)

ऋष्यादि न्यास –

ऊँ अंगुष्ठयो।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं कं खं गं घं ङं आँ ऊँ ह्रीं वाय वग्नि सलिल पृथ्वी स्वरूपाऽऽत्मनेडंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं इं चं छ जं झं ञं ई परमात्यपर सुगन्धाऽऽत्पने शिरसे स्वाहा मध्यमयोश्चं

ऊँ आं ह्रीं क्रौं डं टं ठं छं डं दं णं ऊँ क्षेत्र तव कचक्षु-जिव्हा घ्राणाऽऽत्मने शिखायै वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं एं तं थं दं घं नं प्राणातमने कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं पं फं वं भं मं वचना दान गमन विसर्गा नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट्।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं यं रं लं वं शं यं सं हं लं क्षं अः मनो बुद्धयं हंकार चित्राऽऽत्मने अस्त्राय फट्।

 

हाथ से मछली को स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े:- ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली प्राणा इह प्राणाः। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली जीव इह स्थितः। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली सर्वेन्द्रियााणि इह स्थितानि। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं संहों हंसः मछली वाङ मनश्च्क्षु-श्रोत्र-घ्राण-प्राणा इहागत्य संखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

बगला सूक्त

यां ते चक्रु रामे पात्रे यां चक्रर्मिश्र घान्ये।

आमे मांसे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!1!!

अर्थ:-

अभिचार करने वाले ने अच्छे मिट्टी के पात्र में या घान, जौ गेंहू, उपवाक, तिल, कांगनी के मिश्रित घान्यों में अथवा कुक्कुटादि से कच्चे मांस में, हे कृत्ये! तुझे किया है। मैं तुझे उपचार करने वाले पर ही वापस भेजता हूँ !!1!!

यां ते चक्रुः कृक वाकावजे वा यां कुरीरिणिं।

अव्यां ते कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!2!!

अर्थ:-

हे कृत्ये! तुझे मुर्गे, बकरे या पेड़ पर किया है, तो हम अभिचार करने वाले पर ही लौटाते हैं !!2!!

यां ते चक्रुः रेक शफे पशूना मृभयादति।

गर्दभे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!3!!

अर्थ:-

हैं कृत्ये! अभिचारकों ने तुझ एक खुर वाले अथवा दोनांे दाँत वाले गघे पर किया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!3!!

यां ते चक्रुः रमूलायां वलगं वा नराच्याम्।

क्षेत्रे ते कृत्या मां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!4!!

अर्थ:-

हे कृत्ये! यदि तुझे मनुष्यों से पूजित भक्ष्यं पदार्थ में ढक कर खेत में किया गया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते हैैं !!4!!

यां ते चक्रुः र्गार्हपत्ये पूर्वाग्नावुत दुश्चितः।

शालायां कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!5!!

अर्थ:-

हे कृत्ये! तुझे गार्हपत्याग्नि या यज्ञशाला में किया गया है, तो तुझे अभिचारक पर लौटाते है !!5!!

यां ते चक्रुः सभायां यां चक्रु रघिदेवने।

अक्षेषु कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!6!!

अर्थ:-

हे कृत्ये! तुझे सभा में या जुएं के पाशों में किया गया है तो अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!6!!

यां ते चक्रुः सेनायां यां चक्रु रिष्वायुघे।

दुन्दुभौ कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!7!!

अर्थ:-

सेना के बाण अथवा दुन्दुभि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मैं अभिचारक पर ही लौटाता हूँ !!7

 

यां ते कृत्यां कूपेऽवदघुः श्मशाने वा निचरन्तुः।

सद्यनि कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् !!8!!

अर्थ:-

जिस कृत्या को कुएं में डालकर, श्मशान में गाड़ कर अथवा घर में किया है, उसे मैं वापस करता हूँ !!8!!

यां ते चक्रुः पुरूषास्थे अग्नौ एंक सुके च याम्।

म्रोकं निर्दांह क्रव्यादं पुनः प्रति हरामि ताम् !!9!!

अर्थ:-

पुरुष की हड्डी पर या टिमटिमाती हुई अग्नि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मांसभक्षी अभिचारक पर ही पुनः प्रेमिक करता हूँ !!9!!

अपथेना जभारैणां तां पथेतः प्रहिण्मसि।

अघीरो मर्या घीरेभ्यः सं जभाराचित्या !!10!!

अर्थ:-

जिस अज्ञानी ने कृत्या को कुमार्ग से हम मर्यादित लोगों पर भेजा है, हम उसे उसी मार्ग से उसकी (भेजने वाले की) ओर प्रेरित करते हैं !!10!!

यश्चकार न शशाक कर्तु शश्रे पदामग्ङलिम्।

चकार भद्र मस्मभयम भगौ भगवद्भ्यः !!11!!

अर्थ:-

जो कृत्या द्वारा हमारी उंगली या पैर को नष्ट करना चाहता है, वह अपने इच्छित प्रयास में सफल न हो और हम भाग्यशालियों का वह अमंगल न कर सके !!11!!

कृत्याकृतम वलगिनं मूलिनं शपथेsप्ययम |

इन्द्रस्तम हन्तुमहता वधेनाग्निर्विध्यत्वस्त्या || १२ ||

अर्थ:-

भेद रखने वाले तथा छिपकर (गुप्तरूप से) कृत्या कर्म करने वाले को, इन्द्र अपने विशाल शस्त्र से नष्ट कर दें, अग्नि उसे अपनी ज्वालाओं से जला डाले !!12!!

हवन:- प्रत्येक श्लोक के बाद स्वाहा लगा कर 108 या 11 पाठ की आहुति देते हैं।यह समझाने के लिए अर्थ भी दिया हुआ है पाठ करते समय श्लोक ही मात्र बोले।

हवन सामग्री:- पिसी हल्दी, पीली सरसों, सुनहरी हरताल, मालकांगनी, सफेद तिल, देशी घी में सानते हैं।

कृत्या निवारण – 11 हजार पाठों का विधान है।

मछली की प्राण प्रतिष्ठा:- विनियोग – ऊँ अस्य प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा, विष्णु, रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामनिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता, आं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्रां  कीलकम् मछली प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः (जल भूमि पर डाल दें)

पश्चात -ऋष्यादि न्यास करें।

ऊँ अंगुष्ठयो।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं कं खं गं घं ङं आँ ऊँ ह्रीं वाय वग्नि सलिल पृथ्वी स्वरूपाऽऽत्मनेडंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं इं चं छ जं झं ञं ई परमात्यपर सुगन्धाऽऽत्पने शिरसे स्वाहा मध्यमयोश्चं

ऊँ आं ह्रीं क्रौं डं टं ठं छं डं दं णं ऊँ क्षेत्र तव कचक्षु-जिव्हा घ्राणाऽऽत्मने शिखायै वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं एं तं थं दं घं नं प्राणातमने कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं पं फं वं भं मं वचना दान गमन विसर्गा नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट्।

ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं यं रं लं वं शं यं सं हं लं क्षं अः मनो बुद्धयं हंकार चित्राऽऽत्मने अस्त्राय फट्।

मछली को स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े:- ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली प्राणा इह प्राणाः। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली जीव इह स्थितः। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली सर्वेन्द्रियााणि इह स्थितानि। ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं संहों हंसः मछली वाङ मनश्च्क्षु-श्रोत्र-घ्राण-प्राणा इहागत्य संखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

बगलामुखी साघक जो पुरश्चरण कर प्रयोग सिद्ध कर चुके हैं उनके लिए तंत्र युद्धों को जितना सहज हो जाता है भगवती बगलामुखी अभिचार कर्म से मुक्ती में अत्यधिक सहायक है

यह तो स्पष्ट है ,अनिष्ट करने के उद्देश्य से विश्व के हर कोने में हर धर्म व जाति में लोग तंत्र मत्रं जादु टोने को अपनाते हैं परन्तु न्याय वहाँ भी होता है एक सही साघक मात्र एक झाड़ें से ही बगेर यज्ञ बगेर वली के बड़े से बड़े जादू को छड़ भर में काट देता है फिर कोई भूत ,प्रेत ,जिन्न,जिन्नात ,या कोई देवी देवता को विवश करके किसी जानवर या पक्षी की बलि हि क्यों ना दी गई श्रेष्ठ साघक अत: उच्च कोटि के साघक के सामने ये सब मामूली ही है फीर इसे कृत्य कहो या कृत्या या फीर जादू टोना.

 …आचार्य