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बगलामुखी साधना
दीक्षा

(बगलामुखी साधना पीठ)

भगवती बगलामुखी पीताम्बर
की भक्ति मार्ग
है
जीवन की
सभी समस्याओं निदान!

बगलामुखी साधना पीठ ≫ गुरु दीक्षा

मानव अपने जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं और भय से ग्रस्त रहता है। इन सभी का समाधान माँ बगलामुखी की दीक्षा प्राप्त कर साधन से संभव है।

निम्न भय से मुक्ति के लिए ग्रहण करें माँ बगलामुखी की दीक्षा:

  • शत्रु भय
  • पराजय का भय
  • अकाल मृत्यु का भय
  • परीक्षा में असफलता का भय
  • ब्रह्मराक्षस व अघोर तत्रं का भय
  • भूत, प्रेत, तत्रं, मत्रं, टोने-टोटके का भय
  • कोर्ट कचहरी मुक़दमा बंधक आदि का भय

निम्न की प्राप्ति के लिए ग्रहण करें माँ बगलामुखी की दीक्षा एवं साधना:

  • उच्च वाक् शक्ति
  • समाजिक में प्रतिष्ठा
  • अभिचार् कर्म से मुक्ती
  • राज्य-नौकरी, राज्य पद प्राप्ति
  • कुंडलि से कालसर्प व ग्रहण से मुक्ती
  • शत्रू, रोग, व क़र्ज़ का भय से निवृत्ति
  • घर में वास्तु दोष कारण भूत प्रेत पिशाच से मुक्ती
  • लोगों के सामने बेबाक बोलने के लिए तर्क में विजय
  • नकारात्मक ऊर्जा, तंत्र, मंत्र, एवं जादू टोने से अपने परिवार की सुरक्षा

उपरोक्त समस्त संकटों के निदान का मार्ग मात्र गुरू-दीक्षा से ही संभव है। गुरू द्वारा दर्शाए गए दीक्षा-मार्ग पर चल और तप कर मनुष्य अपने भाग्य अथवा दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की क्षमता रखता है।

महर्षियों ने ईश्वर की इक्छा से ही शास्त्रों में मनुष्यों के कल्याण हेतु मार्गों का वर्णन किया है। इनमे से सबसे श्रेष्ठ मार्ग शास्त्रों का पठन-पाठन जिसके माध्यम से जीवन रक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे प्रशिक्षण के ज्ञान देने वाले को गुरू कहा जाता है। गुरु का पद समस्त रिस्ते-नातों से ऊपर होता है। गुरु का पद भगवान से भी बड़कर माना गया है।

गुरु द्वारा सुलभ, सरल और सुरक्षित जीवन-यापन के लिए दिए जाने ज्ञान, जिसे गुरू भावुक होकर एक अनुभव को रूप में बाँटता है, उस ज्ञान रुपी सम्मान व कृपा की प्राप्ति हेतु किये जाने प्रथम व्यवहार को ही दीक्षा कहा जाता है।

दीक्षा का तात्पर्य निपुणता एवं योग्यता से है

किसी कार्य में निपुणता की प्राप्ति केवल गुरु के माध्यम से ही की जा सकती है। निपुणता का अर्थ दक्षता होने से है। जेसे कोई मूर्ति का निर्माण कराना चाहता है तब उस मूर्ति के कार्य को वो ही करेगा जो इस कला में दक्षता रखता हो व सीखने वाले उसी से मूर्ति कला की दक्षता सीखने चाहते है। जैसे की एक संगीतकार को सुर और ताल का ज्ञान होता है। तब सिखने बाले और सुनने बाले उसी निपुण कलाकार के पिछे भागते हैं।

दीयते ज्ञान विज्ञानं क्षीयन्ते पाप-राशय: ।
तेन दीक्षेति हि् प्रोक्ता प्राप्ता चेत् सद्गुरोर्मुखात।।

अर्थात् : जिसने ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति होती है और पाप-समूह नष्ट होते हैं ऐसे सद्-गुरू के मुख से प्राप्त ‘मत्रं ग्रहण को दीक्षा कहते है

गुरु दीक्षा का विशेष महत्त्व, वैदिक व तांत्रिक नियमो का पालन करना सिखना व उन्हें अपना कर लाभ प्राप्ति से है। पवित्र दीक्षा संस्कार का विधान समस्त पापों की शुद्धि करने वाला है तथा समस्त संकटों से छुटकारा देना है। दीक्षा के दौरान गुरू स्यम् शिष्य पर कृपा कर उसे धन्य करते हैं जिसके प्रभाव से साधक पूजा, तप, साधना, आदि हेतु उत्तम अधिकारों को प्राप्त कर लेता है। गुरु इस दुर्लभ ज्ञान को शिष्य को प्रदान करते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति में वही आत्मशक्ति उस पराशक्ति के रूप में विद्यमान रहती है जो जन्म-जन्मान्तरों से सांसारिक मोह-माया, आणव, मायिक, कार्मिक-मलों तथा पंच-कंचुकों से आवेष्ठित रहने के कारण निष्क्रिय तथा सुषुप्त अवस्था में देह में उपस्थित रहती है। जब गुरू द्वारा दीक्षा संस्कार सम्पन्न किया जाता है तो वह मायावी पशु आवरण पूरी तराह से टूट जाता है तथा दिव्य उर्जा शिष्य को अन्तर्निहित दिव्य-शक्ति का आभास होता हैं।

गुरू द्वारा दिव्य-शक्ति का संचार

पुत्र का पिता की सर्वस्व सम्पत्ति पर अधिकार होता है, परन्तु ज्ञान जो गुरू द्वारा ही प्रकाशित किया जा सकता है उसे पुत्र भी दीक्षा से ही प्राप्त कर सकता है। अत: पुत्र के अवगुणों को देख पिता पुत्र  को यह  दुर्लभ ज्ञान नहीं देता जो की गोपनीय, परमगूढ़ तथा विस्तृत है। शिरू से दीक्षा विषय अत्यन्त रहस्यमय रहा है।

गुरू से दीक्षा प्राप्त हो जाने पर शिष्य को दिव्य शक्ति का संचार होना प्रारम्भ हो जाता है। दीक्षा शब्द दो अक्षरों दी तथा क्षा से बना है। दी का तात्पर्य देना तथा क्षा का तात्पर्य क्षरण (नष्ट) करना होता है। दीक्षा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है तथा समस्त पापों का क्षय होता है।

दीक्षा हमारी पुरातन भारतीय संस्कृति की सबसे प्रसनातन सभ्यता है जिसे गुरू शिष्य पर अनुग्रह करता है। इसीलिए श्री राम, श्री कृष्ण, श्री दत्तात्रे आदि महापुरुषों ने गुरु दीक्षा ग्रहण की और गुरु के महत्व को बढाया है।

जिस प्रकार एक कारीगर के द्वारा बनायीं गयी पाषाण की मूर्ति मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित की जाती है और उसमें देवी अथवा देवता का तेजोमय स्वरुप प्रदान किया जाता है जिससे वह सबके लिए सम्मानीय, पूज्यनीय, ओजोमय बन जाती है वैसे ही मानव भी परमात्मा रूपी कारीगर की अद्भुत कृति है जो की इस संसार रूपी मंदिर में एक चलती-फिरती मूर्ति के सामान है। इसलिए इस मानव के चोले को भी दीक्षा, मंत्र, प्राण-प्रतिष्ठा  कर मानव स्वरुप को तेजोमय, ओजोमय बना कर मोक्ष की प्राप्ति करना यही दीक्षा का असली महत्व है।

गुरूओं की पहचान शास्त्रार्थ से है व योगी की पहचान योग से है। वहीं साघक की पहचान उसकी सिद्धी से। गुरू कैसा भी नहीं अपितु दक्ष होना चाहिए। मात्र वस्त्रों और प्रवचनों तक सीमित नहीं होना चाहीये। जो सबको रूला ले व सबको हंसा ले, अपने क़िस्से कहानियों से बहका ले; ऐसे बहुरूपिये हर जगाह मौजूद है जो गूरू और सदगूरू बनके घूम रहे है।

गुरू को लेकर आत्मा व मन एक छण में धारणा ही निर्णय भी कर लेते हैं क्योंकि चिकनी चूपड़ी बाते और सत्यता दोनो में फ़र्क़ है। व्यक्ति का मन और अंतरात्मा ये फरक समझ सकते हैं।

हमारी भारतीय प्राचीन सनातन सभ्यता में संस्कारों को व मनुष्य की सोच को मानवता में परिणीत करने के लिए एवं अपने जीवन को सही शुद्ध सफल वनाने हेतु तथा मानवता की ओर ले जाने के लिए ज्ञान की या संस्कार के सिद्धांतो की आवश्यकता होती है।

वैदिक धर्म की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा को बचाने हेतु ऋषि मुनियों के गुण-सिद्धांतो को सुरक्षित करना हम मानवो का ही परम कर्तव्य है। जो संस्कृती बुद्धि से तर्क से सृष्टी-रहस्यों के उठते प्रश्नो का उत्तर दे उस दुर्लभ संस्कृति के प्रति दायित्व भी आवश्यक हैं। शास्त्रार्थ में शक्ति तथा भय का निवारण, आत्मा तत्व का बोध गुरू के द्वारा ही संभव है। किसी विशेष अनुकूल विद्वान साधू-संत जो इस भारतीय संस्कृति को धरोहर पूजनीय मानता है व उन्हें विशेष उपलब्धि है तब उनका अनुग्रह लेना ही दीक्षा लेना कहलाता है |

जिस प्रकार राजा का पुत्र राज्य का अधिकारिक राजा होता है उसी तरह साघक इस दीक्षा-परम्परा को अपना कर तप से राज्य की स्थापना करने में सक्षम हो जाता है। तप से ही राज्य है, व यही राज्य चुनाव आदि में विजयी हेतु विशेष मार्ग है।

दिक्षार्थी एक शिष्य बनकर वैदिक धर्म की रक्षा कर सकते है। दीक्षा लेना स्वत: की स्वतंत्रताओं का है तथा उस स्वतंत्र प्रकाश और प्रकाशन से है जो की बिना किसी अवरोध के स्वत: प्रकाशित हो रहा है।

धर्मार्थकाम मोक्षाणां सद्ध्य: सिद्धिर्भवेन्न:

मंत्र दीक्षा से हमें चारो पुरुषार्थ–धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं|

पहला सुख निरोगी काया अत: दीक्षित होने के उपरांत साघक का आन्तरिक एवं शारीरिक विकास होता है और जब मंत्र जाप करते है तो उससे मानसिक आत्मिक शांति बढती है जिससे बोद्धिक बल बढता है।

दुसरा सुख घर में माया अत: धन सम्पदा है तो तप से राज्य तक स्थापित किये गये है।दरिद्रता की  मुक्ती से मिलती है तथा तप से तपेश्वरी से राजेश्वरी से है।

तीसरा सुख पत्नी सतवंती से है अत: धर्म केव तप के आचरण व मार्ग पर चलने बाले की पत्नी भी ईमानदार होती है और पति के अलावा किसी और का चित्र मन में बसने नहीं देती।

चौथा सुख पुत्र अज्ञ्याकारी: ऐसे साघक विरले ही है जो साघना के बल से व गुरू के द्वारा बताये मार्ग पर चलते हुये संसार के चारों सुखों को प्राप्त कर लैते है,

यही दीक्षित करने और होने का मूल अर्थ हैं लेकिन तांत्रिकों के पास लोग दीक्षा हेतु मात्र सघारं अर्थात मारण, वशीकरण व अन्य पाप कर्मों के उद्देश्य प्राप्ति के लिए ही आते है।

सभी

पूजन प्रकार

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आसुरी बगलामुखी प्रयोग

शत्रुओं के पूर्णत: शमन के लिए यह विशेष एवं उच्च कोटि का बगलामुखी तंत्र प्रयोग है। इसके प्रभाव से शत्रु का बचना असंभव है।
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बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच

भगवती का यह कवच शत्रु के विद्वेषण, आकर्षण, उच्चाटन, मारण तथा स्तम्भन आदि प्रयोगों से भक्त को मुक्ति दिलवाता है।
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विपरीत प्रत्यंगरा प्रयोग

भूत-प्रेत, तत्रं-मत्रं प्रयोग को वापस भेजने हेतु बगला विपरीत-प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान दुष्टों का नाश कर सरे कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
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पञ्च-अस्त्र प्रयोग

संपत्ति से जुड़े विवाद के पूर्ण समाधान के लिए भगवती बगलामुखी का पञ्च-अस्त्र प्रयोग-षोडशौपचार सबसे सटीक मन गया है।
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बंधक मुक्ति प्रयोग

कानूनी सजा व बंध-मुक्ति या जमानत पर रिहा होने हेतु बगलामुखी बंधक मुक्ति प्रयोग पीड़ित को शत्रु-षड़यंत्र से मुक्ति मिलती है।
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बगलामुखी-दण्डाधिकारी भैरव पूजन

कानूनी कार्यवाही में जीत के लिए भगवती बगलामुखी और दण्डाधिकारी भैरव पूजन-षोडशोपचार की मान्यता सर्वव्यापी है।
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मंगला-बगला प्रयोग

किसी भी स्त्री-पुरुष के विवाह में हो रही देरी का समाधान हेतु मंगला-बगला प्रयोग को अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।
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बगलामुखी विद्वेषण प्रयोग

बगलामुखी का यह प्रयोग आपके शत्रुओं के दल में आपस में युद्ध करा देता है। यह प्रयोग तलक के लिए भी किया जाता है।
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बगलामुखी तत्रं प्रयोग

विशेष एवं उच्चकोटि का यह भगवती बगलामुखी प्रयोग भक्त पर हुए किसी भी तरह के अभिचार कर्म से मुक्त करने में सक्षम है।
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बगला व पंज्जर स्त्रोत प्रयोग

भगवती बगलामुखी व पंज्जर स्त्रोत प्रयोग भक्त के जीवन में आ रही आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है।
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बागला-पशुपती आह्वान

यह बगलामुखी प्रयोग उन लोगों के लिए लाभकारी है जिन्हें विदेश जाने मैं कई सारी समस्याओं का सामना करना पद रहा है।
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राज्य-पद प्राप्ति प्रयोग

राज बगलामुखी व राज्य राजेश्वरी प्रयोग राज्य व सरकारी नौकरी प्राप्ति और चुनाव में टिकिट व जीत लिया किया जाता है।
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पताका व बगलामुखी

नौकरी हेतु पताका व बगलामुखी षोडशोपचार पूजन ये अत्यधिक प्रसिद्ध है। अंत: ये प्रयोग भी नौकरी व कैरियर हैतू श्रेष्ठ है।
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पताका षोडशोपचार पूजन

बगलामुखी षोडशोपचार पूजन व पताका षोडशोपचार पूजन व चड़ाना से रोग के इनफ़ेक्शन में तुरंत लाभ दैखा गया है।
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योनी-हवनकुंड पूजन

संतान प्राप्ति हेतु योनी-हवन कुंड पूजन की मान्यता है. देवी के इस प्रयोग से हर तरह के कोख-बंधन खुल जाते हैं।
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